आज नहीं तो कल —- काजल घोष

हिन्दी कविता
आज नहीं तो कल
काजल घोष
25/5/2021

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आज नहीं तो कल ही सही
करते करते कितने साल बीत गये
नहीं जा पायी तुम्हारे शहर
न ढूंढ पाई तुम्हारा घर
पूछती रह गयी तुम्हारा ठिकाना दर बदर
सबने आँखे चुरा ली
जिन्दगी बिखर गयी इधर उधर

चलो आज कोशिश करते हैं मिलने की
बारिश थम गयी है मौसम खिल सा गया है
चलो निकल पड़ते हैं दोनों
रास्ते में कहीं तो मिल ही जायेंगे
आज नही तो कल
मंजिल तो एक ही है
तुम्हारी मैं और मेरी तुम

अगर मिल गये किस्मत से
कहीं मिलकर बैठेंगे दोनों
किसी छायादार वृक्ष के पीछे
बन्द कमरे से तो अच्छा है प्रकृति के साथ
खुले आसमान के नीचे
मधुर पवन का साथ होगा
हरियाली , फूल और
रंग बिरंगी पक्षीयो से खिला नजारा दिखेगा

दो चार सूखे पत्ते
तुम्हारे बालों में उलझ गये अगर
पत्ते हटाने के बहाने तुम्हे
छूने का आनन्द मिलेगा
अगर कोई फूल बेख्याली से
आ गिरे तुम्हारे आस पास
उठा कर मेरे अबिन्यस्त जुड़े में जरूर लगा देना
बस यहीं तक—
और आगे न बढना–

सिर्फ बातें करेंगे–
मेरे तुम्हारे बारे में
कैसे गुजरे दिन तुम बिन–
अगर कुछ बचा न हो कहने को
एक दूसरे की आँखो में झाँक कर
पुराने दिनों की स्मृतियों को ही
कुरेद लेंगे

भटकते दिलों को कुछ
शुकून तो मिलेगा
जो कभी ना मिल पाये इश्क में
तड़पते रहे जीवन भर
उन्हें याद कर कुछ राहत तो होगी
जैसे लैला मजनूँ, सलीम अनारकली
हीर राँझा की कहानी को याद कर
कुछ दर्द भरी गजल तो गा सकेंगे

गम के किस्से तो बहुत सुने हैं
शेरों शायरी के जरिये खुद भी
दिल की तड़प से निकले
भभकते धुयें को आसमान तक पहुँचायेंगे
शायद कोई भटकता प्रेमी
दो चार आँसू हमारे लिये भी बहा दे

हमारे संकटग्रस्त देश की
सूखी बंजर जमीन पर गिरकर वो शायद
कुछ धान उगा सकें —
भूखे पेट बच्चों के आँसू पोंछकर
प्रेमियों के ना सही
पसीने से तर बतर किसानों के चेहरों पर
थोड़ी सी ही सही
कुछ क्षणों के लिये कोमल मुस्कुराहट खिला सके,,,,,,,,,,,,,,,,

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काजल
कविता गृह
कलकत्ता

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